Galileo Galilei गैलीलियो गैलिली जीवन परिचय :
जन्म – 15 फ़रवरी 1564 जन्मस्थल – Pisa, Italy
मृत्यु – 8 जनवरी 1642 मृत्युस्थल – Arcetri, Italy
गैलीलियो गैलिली (Galileo Galilei) का जन्म 15 फ़रवरी 1564 को आधुनिक इटली के पीसा (अपनी तिरछी मीनार के लिए प्रसिद्ध) नामक शहर मे एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद 1583 में Pisa Medical centre में medicine की पढाई शुरू की। पर इसमें उनकी दिलचस्पी ना होने के कारण उन्होंने बाद में इसे बदलकर judgment and mathematics की पढाई शुरू की। लेकिन financial difficulties के चलते 1585 में उन्हें founding छोडनी पड़ी।
बाद में teaching करके उससे होने वाली कमाई से उन्होंने अपनी mathematics की पढाई को continue किया और 1589 में Pisa University में ही mathematics के professor बन गए। 1592 में गैलीलियो Padua Sanitarium में चले गए और फिर 1610 तक वही रहे और यहीं पर उन्होंने बहुत सारे experiments पर काम किया।
(During that time Galileo Galilei worked on undiluted variety of experiments, including probity speed at which different objects fall, mechanics and pendulums.)
गैलीलियो ने लिखा – “ईश्वर की भाषा गणित है”।
गैलीलियो (Galileo Galilei) ने पैराबोला का अध्ययन
गैलीलियो (Galileo Galilei)ने ही जड़त्व का सिद्धांत भी दियाजिसके अनुसार “यदि friction नगण्य हो तो किसी समतल पर चलायमान वस्तु तब तक उसी दिशा व वेग से गति करेगा जब तक उसे छेड़ा न जाए।” बाद में यह नियम न्यूटन के गति के सिद्धांतों का पहला सिद्धांत भी बना।
पीसा के विशाल चर्च में झूलते झूमर को देख कर उन्हें इसका दोलन काल नापने का विचार आया और इस तरह सरल लोलक का सिद्धांत बना कि लोलक का आवर्त्तकाल उसके extension पर निर्भर नहीं करता।
सन् 1632 में उन्होंने ज्वार-भाटे का सम्बन्ध पृथ्वी की गति से बताया हालांकि यह सिद्धांत सही नहीं पाया गया। बाद में केपलर व अन्य वैज्ञानिकों ने इसे सुधारा और सही कारण – चंद्रमा को बताया।
उन्होंने अपनी परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन द्वारा बहुत से खगोलीय अध्धयन किये । उन्होंने चांद पर ऊबड़-खाबड़ गङ्ढे देखे। उन्होने शुक्र ग्रह और बृहस्पति ग्रह का अध्धयन किया। उन्होंने अपने अध्ध्यनों से जो निष्कर्ष निकाले उसने सौरमंडल को ठीक-ठीक समझने में बड़ी मदद की।
उनके इन्ही प्रयासों और विभिन्न प्रयोगों के लिए दिखाई नयी दिशा के कारण ही महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने उन्हें ‘आधुनिक विज्ञान का पिता’ की उपाधि से नवाज़ा।
इस मान्यता को धर्मगुरुओं का समर्थन समर्थन प्राप्त था और अब गैलीलियो ने इन पुरानी अवधारणाओं का खंडन किया तो चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा माना और गैलीलियो को चर्च की ओर से कारावास की सजा सुनायी गयी।
1992 में वैटिकन शहर स्थित ईसाई धर्म की सर्वोच्च संस्था ने यह स्वीकार किया कि गैलीलियो के मामले में निर्णय लेने में उनसे गलती हुई थी। चर्च को अपनी इस ऐतिहासिक भूल को स्वीकार करने में साढे तीन सौ सालों से भी अधिक का समय लगा।
वर्ष 1609 में दूरबीन के निर्माण और खगोलीय पिंडों के अध्ध्यनों की घटना के चार सौ सालों के बाद 400वीं जयंती के रूप में वर्ष 2009 को अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी वर्ष के रूप में मनाकर इस महान वैज्ञानिक को श्रद्धांजलि अर्पित कर अपनी भूल का प्रायश्चित करने का प्रयास किया गया।
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